पूर्णिमा के साथ ही समाप्त हुआ पौष माह, शुरू होगा माघ मास

Jan 06 2023

पूर्णिमा के साथ ही समाप्त हुआ पौष माह, शुरू होगा माघ मास

पौष मास का 6 जनवरी को अन्तिम दिन था। पूर्णिमा के साथ ही पौष माह की समाप्ति हो गई। 7 जनवरी, 2023 से माघ माह की शुरूआत होने जा रही है। दान-पुण्य की दृष्टि से पूर्णिमा का दिन श्रेष्ठ माना गया है।

पौष महीने की पूर्णिमा को स्कंद और भविष्य पुराण में पर्व कहा गया है। इस तिथि में स्नान-दान, श्राद्ध और विष्णु पूजा करने का विधान ग्रंथों में बताया है। इस दिन तिथि, वार और ग्रह-नक्षत्रों से पांच शुभ योग बन रहे हैं। जिससे खरीदारी और नई शुरुआत के लिए ये दिन खास रहेगा।

इस तिथि पर भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। तीर्थ या पवित्र नदियों के जल से स्नान किया जाता है। इस दिन किए गए दान और उपवास से अक्षय फल मिलता है। इस दिन चंद्रमा पूर्ण यानी अपनी 16 कलाओं वाला होता है। इसलिए इस दिन किए गए शुभ कामों का पूरा फल मिलता है।

पूर्णिमा को भी पर्व माना जाता है। इस तिथि से जुड़ी कई परंपराएं हैं, जिनका पालन करने पर धर्म लाभ के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है। धर्म-कर्म से नकारात्मक विचार खत्म होते हैं और मन शांत होता है।

इस पर्व पर तीर्थ दर्शन और नदी स्नान करने की परंपरा का पालन काफी अधिक लोग करते हैं। इसीलिए गंगा, यमुना, शिप्रा, नर्मदा, अलकनंदा सहित देश की सभी पवित्र नदियों में स्नान के लिए बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। इसके साथ ही पौराणिक महत्व वाले मंदिरों में दर्शन करना चाहिए। पौराणिक मंदिर जैसे 12 ज्योतिर्लिंग, 51 शक्तिपीठ, चार धाम आदि।

पूर्णिमा पर सत्यनारायण भगवान की कथा पढऩे और सुनने की परंपरा काफी अधिक प्रचलित है। सत्यनारायण विष्णु जी का ही एक स्वरूप है। स्कंद पुराण के रेवाखंड में इनकी कथा है। कथा पांच अध्यायों में है, 170 श्लोक हैं और दो विषय हैं। एक विषय है संकल्प न भूलना और दूसरा है प्रसाद का अपमान न करना। सत्यनारायण कथा में बताया गया है कि हमेशा सच बोलें और भगवान के प्रसाद का अनादर न करें। कथा की इन बातों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करनी चाहिए।

पूर्णिमा तिथि पर विष्णु जी और महालक्ष्मी का अभिषेक खासतौर पर करना चाहिए। अभिषेक दक्षिणावर्ती शंख से करेंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा। अभिषेक के बाद भगवान को नए वस्त्र पहनाएं, फूलों से श्रृंगार करें। धूप-दीप जलाएं। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। मिठाई का भोग लगाएं। आरती करें। इस पूर्णिमा पर पितरों की विशेष पूजा और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। इससे पितृ तृप्त होते हैं। सौभाग्य और समृद्धि के लिए इस पर्व पर भगवान विष्णु-लक्ष्मी की विशेष पूजा और व्रत किया जाता है।

पूर्णिमा की शाम चंद्र उदय के बाद हनुमान जी की पूजा करें। दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। आप चाहें तो ऊँ रामदूताय नम: मंत्र का जप कर सकते हैं। मंत्र जप कम से कम 108 बार करें।

सोलह कलाओं वाला होता है चंद्रमा
इस पर्व पर सूर्य और चन्द्रमा के बीच 169 से 180 डिग्री का अंतर होता है। जिससे ये ग्रह आमने-सामने होते हैं और इनके बीच समसप्तक योग बनता है। पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण रहता है। इसलिए इस दिन औषधियों का सेवन करने से उम्र बढ़ती है। इस योग में किए गए कामों में सफलता मिलती है।

पूर्णिमा के स्वामी खुद चंद्रमा हैं। ज्योतिष के मुताबिक चंद्रमा का असर हमारे मन पर पड़ता है। इसलिए इस तिथि पर मानसिक उथल-पुथल जरूर होती है। शुक्रवार और पूर्णिमा तिथि से बनने वाले शुभ संयोग में किए गए कामों से सुख, समृद्धि और सौभाग्य मिलता है।

सितारों का शुभ संयोग
इस दिन चंद्रमा आद्र्रा नक्षत्र में होगा। जिससे पद्म नाम का शुभ योग पूरे दिन रहेगा। ब्रह्म और इंद्र नाम के शुभ योग भी इस दिन रहेंगे। वहीं, सूर्य और बुध धनु राशि में होने से बुधादित्य और तिथि, वार, नक्षत्र से मिलकर सर्वार्थ सिद्धि योग बनेगा। इस दिन गुरु और शनि खुद की राशियों में रहेंगे। सितारों की ये स्थिति सुखद और समृद्धि देने वाली रहेगी। इस दिन किए कामों में सफलता मिलने की संभावना और बढ़ जाएगी। इस शुभ संयोग में किए गए स्नान-दान का कई गुना फल भी मिलते हैं।