जानिये मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्त्व व पूजा विधि

Dec 07 2022

जानिये मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्त्व व पूजा विधि

8 दिसंबर को अगहन महीने की पूर्णिमा है। इस दिन स्नान-दान, व्रत और भगवान विष्णु की पूजा करने की परंपरा है। पुराणों में कहा गया है कि इस पूर्णिमा पर स्नान और दान करने से कई यज्ञ करने जितना पुण्य मिलता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु और कृष्ण की पूजा केशव रूप में करनी चाहिए। साथ ही पूजा में शंख से अभिषेक करें। इस दिन व्रत रखने से सेहत में सुधार होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा का दिन प्रत्येक माह का आखिरी दिन होता है। अभी मार्गशीर्ष महीना चल रहा है, ये भगवान श्रीहरि के अवतार कृष्ण को समर्पित है वहीं पूर्णिमा तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसे में मार्गशीर्ष की पूर्णिमा खास महत्व रखती है। मागर्शीर्ष पूर्णिमा इस साल बेहद खास संयोग में मनाई जाएगी। इस दिन तीन शुभ योग सर्वार्थ सिद्धि, रवि और सिद्ध योग का संयोग बन रहा है, जिसमें स्नान, दान, जप, तप करना पुण्यकारी माना जाता है।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व
पूरे महीने पूजा-पाठ और व्रत करने वालों के लिए पूर्णिमा का दिन सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस दिन तीर्थ या किसी पवित्र नदी में स्नान कर के दान करने से पापों का नाश होता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा और कथा करने से भी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर गीता पाठ करने का भी महत्व है। इस दिन गीता पाठ करने से पितर तृप्त होते हैं।

तुलसी की मिट्टी से नहाने का विधान
पुराणों के मुताबिक इस पूर्णिमा पर तुलसी के पौधे के जड़ की मिट्टी से पवित्र सरोवर में स्नान करने का विधान बताया गया है। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है। नहाते वक्त ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। साथ ही इस दिन व्रत और श्रद्धानुसार दान करने की भी परंपरा है। इससे जाने-अनजाने में हुए पाप और अन्य दोष खत्म हो जाते हैं

मार्गशीर्ष पूर्णिमा की पूजा विधि
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं। फिर घर में गंगाजल छिडक़ें। तुलसी के पौधे में जल चढ़ाएं और प्रणाम कर के तुलसी पत्र तोडक़र भगवान विष्णु को अर्पित करें। ताजे कच्चे दूध में गंगाजल मिलाकर भगवान विष्णु-लक्ष्मी, श्रीकृष्ण और शालग्राम का अभिषेक करें। अबीर, गुलाल, अक्षत, चंदन, फूल, यज्ञोपवित, मौली और अन्य सुगंधित पूजा साम्रगी के साथ भगवान की पूजा करें। सत्यनारायण भगवान की कथा कर के नैवेद्य लगाएं और आरती के बाद प्रसाद बांटें। संभव हो तो पूजा वाली जगह पर गाय के गोबर से लेपन करें। गंगाजल छिडक़ें। श्रीहरि के भोग में तुलसीदल अवश्य डाले, लेकिन माता लक्ष्मी को प्रसाद चढ़ाते वक्त तुलसी का पत्ता नहीं डालना चाहिए, शास्त्रों में इसे अनुचित माना है। आरती करें और गरीबों में अपनी क्षमतानुसार धन, अनाज, ऊनी वस्त्रों का दान जरूर करें। गौशाला में गाय की सेवा करें। कहते हैं मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर किया दान अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना फलदायी होता है, इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहते हैं।

पुराणों के अनुसार अनुसुइया और अत्रि मुनि की पुत्र भगवान दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर प्रदोष काल में हुआ था। ऐसे में शाम के समय भगवान दत्तात्रेय का षोडोपचार से पूजन करें। इनकी पूजा करने पर त्रिदेवों का आशीर्वाद एक साथ मिलता है। व्रत के दिन व्रती को दोपहर में सोना नहीं चाहिए। रात में चंद्र देव की पूजा करें। दूध और चीनी मिलाकर चंद्रमा को अघ्र्य दें। इससे तरक्की के मार्ग खुलते हैं।

आलेख में दी गई जानकारियों को लेकर हम यह दावा नहीं करते कि यह पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।